वांछित मन्त्र चुनें

तद॑स्मै॒ नव्य॑मङ्गिर॒स्वद॑र्चत॒ शुष्मा॒ यद॑स्य प्र॒त्नथो॒दीर॑ते। विश्वा॒ यद्गो॒त्रा सह॑सा॒ परी॑वृता॒ मदे॒ सोम॑स्य दृंहि॒तान्यैर॑यत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tad asmai navyam aṅgirasvad arcata śuṣmā yad asya pratnathodīrate | viśvā yad gotrā sahasā parīvṛtā made somasya dṛṁhitāny airayat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। अ॒स्मै॒। नव्य॑म्। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। अ॒र्च॒त॒। शुष्माः॑। यत्। अ॒स्य॒। प्र॒त्नऽथा॑। उ॒त्ऽईर॑ते। विश्वा॑। यत्। गो॒त्रा। सह॑सा। परि॑ऽवृता। मदे॑। सोम॑स्य। दृं॒हि॒तानि॑। ऐर॑यत्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:17» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:19» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब नव चावाले सत्रहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में सूर्य के गुणों का उपदेश करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो (अस्य) इस सूर्यमण्डल सम्बन्धी (सोमस्य) ओषधि गण के (यत्) जो (प्रत्नथा) पुरातन पदार्थ के समान (शुष्मा) दूसरों को शुष्क करनेवाले (विश्वा) और समस्त (गोत्रा) गोत्र जो कि (परीवृता) सब ओर से वर्त्तमान वे (महता) बल के साथ (दृंहितानि) धारण किये वा बढ़े हुए (उदीरते) उत्कर्षता से दूसरे पदार्थों को कम्पन दिलाते हैं (तत्) वह (नव्यम्) नवीन कर्म (अस्मै) इसके लिये (अङ्गिरस्वत्) प्राण के तुल्य तुम लोग (अर्चत) सत्कृत करो (यत्) जो (मदे) आनन्द के लिये उत्तमता से होता है उसको जो (ऐरयत्) कम्पाता कार्य में लाता है, उसको तुम स्वरूप से जानो ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस जगदीश्वर ने समस्त भूगोलों के धारण करने को सूर्यमण्डल बनाया है, उसका सदा ध्यान किया करो ॥१॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सूर्यगुणानाह।

अन्वय:

हे विद्वांसोऽस्य सोमस्य यद्यानि प्रत्नथा शुष्मा विश्वा गोत्रा परीवृता सहसा दृंहितान्युदीरते तन्नव्यमस्मा अङ्गिरस्वद्यूयमर्चत यन्मदे प्रभवति तद्य ऐरयत्तं स्वरूपतो विजानीत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) (अस्मै) (नव्यम्) नवमेव स्वरूपम् (अङ्गिरस्वत्) अङ्गिरसा प्राणेन तुल्यम् (अर्चत) सत्कुरुत (शुष्मा) शुष्माणि शोषकाणि बलानि (यत्) यानि (अस्य) सूर्यस्य (प्रत्नथा) प्रत्नं पुरातनमिव (उदीरते) उत्कृष्टतया कम्पयन्ति (विश्वा) विश्वानि (यत्) यानि (गोत्रा) गोत्राणि (सहसा) बलेन (परीवृता) परितः सर्वतो वर्त्तन्ते यानि तानि (मदे) आनन्दाय (सोमस्य) ओषधिगणस्य (दृंहितानि) धृतानि वर्द्धितानि वा (ऐरयत्) कम्पयति ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या येन जगदीश्वरेण सर्वेषां भूगोलानां धारणाय सूर्यो निर्मितस्तं सदा ध्यायत ॥१॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्या जगदीश्वराने संपूर्ण भूगोल धारण करण्यासाठी सूर्यमंडळ निर्माण केलेले आहे, त्याचे सदैव स्मरण करा. ॥ १ ॥